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GDP की ग्रोथ पर ब्रेक, दूसरी तिमाही में विकास दर सिर्फ 5.4%—क्या कहता है यह आंकड़ा?

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भारत की GDP ग्रोथ दूसरी तिमाही में 5.4% तक धीमी हुई। जानें किन सेक्टर्स में आई गिरावट, इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, और सरकार के लिए आगे की चुनौतियां।

29, नवंबर, 2024 – नई दिल्ली: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए GDP डेटा जारी किया। इस तिमाही में भारत की GDP ग्रोथ दर 5.4% दर्ज की गई, जो पहली तिमाही की 7.8% की वृद्धि के मुकाबले काफी धीमी है। हालांकि, यह गिरावट चिंता का कारण है, लेकिन भारत अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है।

इस तिमाही में कई प्रमुख सेक्टर्स का प्रदर्शन कमजोर रहा। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने केवल 2.2% की वृद्धि दर्ज की, जबकि खनन और उत्खनन में -0.1% की नकारात्मक वृद्धि हुई। कृषि क्षेत्र ने 3.5% की वृद्धि दर्ज की, जो मानसून की अनियमितता के बावजूद स्थिर बनी हुई है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर ने 7.7% की मजबूत वृद्धि दिखाई, जबकि ट्रेड, होटल और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों ने 6% की दर से वृद्धि की।

कमजोर प्रदर्शन के पीछे कारण

अर्थव्यवस्था की धीमी गति के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। वैश्विक आर्थिक सुस्ती और ऊंची ब्याज दरों के कारण निजी निवेश और निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा, उत्पादन लागत में वृद्धि और वैश्विक मांग में कमी ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को धीमा कर दिया है।

सरकारी खर्च में भी गिरावट दर्ज की गई है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-अक्टूबर अवधि में पूंजीगत खर्च 4.67 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की समान अवधि में 5.47 लाख करोड़ रुपये था। हालांकि, राजकोषीय घाटे में सुधार देखा गया है, जो अप्रैल-अक्टूबर 2024 के दौरान 7.51 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 8.04 लाख करोड़ रुपये था।

उपभोग और सरकारी खर्च का योगदान

इस तिमाही में निजी खपत (Private Final Consumption Expenditure – PFCE) 6% बढ़ी, जो GDP का लगभग 60% हिस्सा है। यह वृद्धि घरेलू खपत के स्थिर रहने का संकेत देती है। वहीं, सरकारी अंतिम उपभोग व्यय में 4.4% की वृद्धि दर्ज की गई।

आगे की राह

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को आर्थिक गति को बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने और निजी क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन योजनाएं लाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, रोजगार सृजन और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण जैसे उपायों से खपत और निवेश को बढ़ावा दिया जा सकता है।

हालांकि, दूसरी तिमाही के आंकड़े चिंताजनक हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत बुनियादी ढांचे और वैश्विक स्तर पर बेहतर प्रदर्शन के कारण दीर्घकालिक संभावनाएं सकारात्मक बनी हुई हैं।

दूसरी तिमाही के GDP आंकड़े यह संकेत देते हैं कि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, लेकिन यह पूरी तरह से चिंताजनक स्थिति नहीं है। वैश्विक मंदी और घरेलू नीतियों के बीच संतुलन बनाना भारत के लिए जरूरी है। आने वाले महीनों में, सरकार की आर्थिक रणनीतियां और वैश्विक हालात इस बात को तय करेंगे कि भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से पटरी पर लौटती है।

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